दर्शन का शाब्दिक अर्थ “दिव्य दृष्टि” होता है। यह ऐसी रीति है जिसमें आप किसी मंदिर के देवता,, संत या एक पूर्ण आत्म साकार गुरु को देख़ रहे हैं अथवा उनके समक्ष होते हैं। एक पारस्परिक अनुभव, यह वह क्षण है जिसमें आप भगवान को देखते हैं और भगवान आपको देखते हैं। आध्यात्मिक साधक अक्सर दीर्घ तीर्थ यात्राएँ करते हैं, पवित्र स्थलोँ में देवी देवताओं, संतों अथवा गुरुओं के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए।
दर्शन क्या है?
अक्सर, आराधना का ही एक रूप मानते हुए , यह आध्यात्मिक प्रगति एवं पूर्णता को प्राप्त करने का एक अवसर है। हालाँकि पारम्परिक हिन्दू पूजा नियमो में से कई नियमो में लंबे मन्त्र जप, विभिन्न कर्मकांड, विशिष्ट ध्यान आदि सम्मिलित रहते हैं-दर्शन में भक्त से बहुत कम अपेक्षाएँ है। दिव्य आत्मा के श्रद्धापूर्वक दर्शन प्राप्त करना मात्र पर्याप्त होता है।
यह आवश्यक नहीं है कि हम प्राप्त हुई कृपा और आशीर्वाद को समझ पाएँ। वास्तव में यह सम्भव ही नहीं है। ईश्वर से प्राप्त हुए इस आशीर्वाद और कृपा को समझ पाना असम्भव है और इसी कारण हर व्यक्ति के लिए यह एक अद्वितीय अनुभूति होती है ।
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कैसी अनुभूति होती है?
कोई दो दर्शन एक समान नहीं होते हैं। हर एक , आपके तथा भगवान के मध्य एक अद्वितीय एवं पवित्र क्षण होता है। कुछ को आंतरिक परिवर्तन की अनुभूति होती है, कुछ को आरोग्य भाव जबकि कुछ अन्य को अत्यधिक प्रेम तथा स्वीकृति की अनुभूति होती है। कभी-कभी व्यक्ति कुछ भी अनुभव नहीं करता। प्रत्येक व्यक्ति कुछ अलग अनुभव करता है और उन्हें कुछ अलग प्राप्त होता है, जो उनके लिए अनन्य है।
आपके निजी अनुभव से परे , जो चीज़ हर दर्शन में समान रहती है- वह है प्रेम का आदान-प्रदान। जिस भी देव, संत अथवा गुरु से आप यह प्राप्त करते हैं , वे आप पर नि: स्वार्थ दिव्य प्रेम की बौछार करते हैं।
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दर्शन के दौरान क्या होता है?
आप इसके बारे में दो प्रकार से सोच सकते हैं- बाहर क्या होता है तथा भीतर क्या होता है। बाहर से संभवतः यह कुछ ज़्यादा ना लगे। हिन्दू परम्परा में, देव , सन्त अथवा गुरु को प्रणाम करना प्रथागत है और उनकी ओर आपकी श्रद्धा को दर्शाता है। दृष्टि सम्पर्क के माध्यम से ,वे भक्त को देखते हैं तथा भक्त को भी दिव्यता की एक झलक प्राप्त होती है।
परमहंस श्री विश्वानन्द एक पूर्ण आत्म-साकार सतगुरु जो नियमित रूप से उन्हें दर्शन दे रहे हैं जो इसकी तलाश में हैं, वे इस आंतरिक अनुभूति के बारे में कहते हैं, “जब आप दर्शन के लिए आते हैं, जब मैं आपकी आत्मा को देखता हूँ उस क्षण मैं आपके स्वरूप, आपके वास्तविक स्वरूप को देखता हूँ। और मैं उस सुंदरता को देखता हूँ, जो आपके भीतर विद्यमान है। मैं चाहता हूँ कि आप भी इसे देखें। आप भी अपने भीतर इसे देख सकें, और आप स्वयं भी इसकी अनुभूति कर सकें”। वे अक्सर कहते हैं कि वे आपकी आत्मा के दर्पण से अशुद्धियों को पवित्र कर रहे हैं ताकि आप ईश्वर के प्रकाश को अधिक से अधिक प्रतिबिंबित कर सकें।
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आप दर्शन कैसे प्राप्त कर सकते हैं
दर्शन हर किसी के लिए उपलब्ध है। इस में सम्मिलित होने के लिए सभी आमंत्रित हैं बिना किसी जाति या धर्म के भेदभाव के। जो भी इस आशीर्वाद को प्राप्त करना चाहते हैं वो किसी भी मंदिर अथवा अपने घर में ही किसी प्रतिमा( भगवान का मानवीय अवतार) या चित्र के समक्ष भी इसे प्राप्त कर सकते हैं। संत और गुरु प्रायः भिन्न-भिन्न तरह से दर्शन देते हैं।
जैसे परमहंस श्री विश्वानन्द, उदाहरण स्वरूप, आपके लिए दर्शन ऑनलाइन भी देते हैं। बाहर से देखने में संभवतः यह कुछ ज़्यादा ना लगे। एक बार सब के ऑनलाइन आने के पश्चात् , हो सकता है परमहंस श्री विश्वानंद आपको “श्री विट्ठल गिरिधारि परब्रह्मने नमः” का जप करने के लिए कहें, जब वे सभी उपस्थित लोगों को एक-एक करके देख रहे होते हैं। इस प्रकार वे प्रत्येक व्यक्ति को दिव्य चेतना में देखते हैं।
सभी को देखने के पश्चात् , वे आपको कुछ मिनटों के लिए ध्यान लगाने के लिए कहेंगे और अपनी तीसरी आँख पर उन्हें देखने के लिए कहेंगे। उसके पश्चात् आप अपनी आँखें खोलेंगे तथा उनकी आँखों में देखेंगे। यह वह क्षण है जब दर्शन होते हैं, जब आप देखते हैं और दिखाई देते हैं , वो क्षण जब आप नि:स्वार्थ ईश्वरीय प्रेम की बौछार से अनुग्रहित होते हैं।
दर्शन में भाग लेने के लिए आप साइन अप कर सकते हैं और यदि आपके दर्शन सम्बन्धी और प्रश्न हों तो हमें इस पर ई मेल भेज सकते हैं: welcome@bhaktimarga.org